फिल्म स्क्रिप्ट कैसे लिखें? हर प्रत्याशी फिल्म लेखक के अंदर ये सवाल जरूर होता है। कहाँ से शुरुआत करें, कैसे आगे बढ़ें, किन बातों का ध्यान रखें, कैसे फॉर्मेटिंग करें और आखिर में बेचें तो कैसे बेचें। अगर आप इन सवालों से जूझ रहें हैं तो ये आर्टिकल आपके लिए मददगार साबित होगा।
फिल्म स्क्रिप्ट क्या है ? What is film script?
Film Script Kya he – दृश्य वर्णन के संदर्भ में कहानी लिखने की तकनीक को पटकथा लेखन या फिल्म पटकथा लेखन के रूप में जाना जाता है। इसलिए इस तकनीक के साथ विकसित दस्तावेज़ को पटकथा या फिल्म स्क्रिप्ट के रूप में जाना जाता है। (The technique of writing a story in terms of visual narration is known as screenplay writing or film script writing.)
कुछ पेशेवरों का तर्क हो सकता है कि पटकथा लेखन एक कला है, यह जन्मजात प्रतिभा में है और इसके लिए किसी तकनीक की आवश्यकता नहीं है। यह सबसे बड़ी गलत धारणा है जो सबसे ज्यादा आकांक्षी पटकथा लेखक विश्वास karte है।
सच्चाई यह है कि पटकथा एक शिल्प (craft) है और एक शिल्प को सही प्रशिक्षण और पर्याप्त अभ्यास के साथ सीखा जा सकता है। यही कारण है कि अलग-अलग पेशेवर पृष्ठभूमि के लोग इस दृश्य कहानी व्यवसाय में अपने कैरियर का सफलतापूर्वक निर्माण कर चुके हैं।
फिल्म की स्क्रिप्ट कैसे लिखें How to write a film script in Hindi?
फिल्म की पटकथा लेखन एक कदम दर कदम की प्रक्रिया है और एक पूरा मसौदा (ड्राफ्ट) लिखने के लिए इन सभी चरणों से गुजरना होगा।
Idea
किसी भी परियोजना की शुरुआत एक विचार(idea) से होती है। आइडिया कुछ भी हो सकता है। यह एक समाचार पत्र में देखी गई साधारण तस्वीर हो सकती है। यह समाचार पत्र या पत्रिका पर पढ़ी जाने वाली एक समाचार पंक्ति(headline) हो सकती है। यह पूरी तीन घंटे की लंबी फिल्म हो सकती है। यह कुछ भी हो सकता है जो लेखक को आगे बढ़ने और उस पर एक कहानी या पटकथा लिखने के लिए प्रेरित करता हो। जावेद अख्तर sir और सलीम खान sir के एक साक्षात्कार में, उन्होंने उल्लेख किया, राम और श्याम को देखने के बाद, उन्हें सीता और गीता का विचार मिला। उन्होंने सोचा कि अगर कहानी जुड़वाँ भाइयों की बजाय जुड़वाँ बहनों की हो तो क्या होगा।
Story / Plot
भारतीय फिल्म उद्योग पूरे विश्व में एकमात्र फिल्म उद्योग है, जहां सबसे अधिक Original Content का उत्पादन किया जाता है। यहां, लेखक एक विचार से मूल कहानी विकसित करता है और इसे एक पटकथा में विकसित करता है। लेकिन पश्चिम की ओर(Hollywood), ज्यादातर पटकथा लेखक एक उपन्यास को अपनाते हैं और एक पटकथा में बदलते हैं।
तो एक बार, आप अपने लिए एक विचार तय करते हैं, अब इसे कहानी या कथानक में विकसित करने का समय है।
Plot Structure
प्लाट और स्टोरी दोनों में हल्का अंतर हैं। कहानी हमें इंसानी जज्बातों के बारेमे बताने के लिए प्रेरित करता है जब की प्लाट उन जज्बातों के पीछे छिपे हुए कारणों के बारेमे सोचने पर मजबूर करता है।
उदहारण
एक राजा था और एक रानी थी। राजा मर गया और रानी मर गयी। ये एक कहानी है।
एक राजा थे और एक रानी थी। लम्बे आरसे से बीमारी के चलते राजा एक दिन चल बेस.इस सदमे को बर्दास्त कर नहीं पायी और राजा की मोहोब्बत में रानी भी चल बसी। (ये एक प्लाट का उदहारण है)
प्लाट का कांसेप्ट कोई नयी कांसेप्ट नहीं है। एरिस्टोटल के ज़माने से प्लाट हर स्टेज प्ले का आत्मा है। और आज भी प्लाट डेवेलोप किया जाता है और फिर उसके बाद स्क्रीनप्ले।
किसी भी फिल्म का प्लाट तीन एक्ट को लेकर बनता है – एक्ट १, एक्ट २, एक्ट ३
Act one = Set up or setting
Act two = Confrontation
Act three = Resolution
Act क्या है? आगे बढ़ने से पहले, चलिए पहले समझ लेते हैं कि वास्तव में एक एक्ट क्या है। यदि आप ध्यान दें, तो आप आसानी से नोटिस कर सकते हैं, हर फिल्म एक चरित्र या पात्रों के बारे में है जो एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं।
शोले
ठाकुर बलदेव सिंह गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए जय और वीरू की मदद लेते हैं।
मुन्नाभाई एमबीबीएस
मुन्नाबाई ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर चिंकी से शादी मानाने निकल पड़ते हैं।
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
राज सिमरन शादी के समारोह के बीच सिमरन के परिवार के प्यार और विश्वास को जीतने और सिमरन की हाथ मांगने निकल पड़ते है।
लगान
भुवन गाओं के कुछ बन्दों के साथ क्रिकेट सिखने और ब्रिटिश सर्कार के खिलाफ क्रिकेट खेलने निकल पड़ते हैं
इन उदाहरणों से साफ़ समझने को मिलता है के एक फिल्म एक किरदार के बारेमे हैं जो कुछ हासिल करने की कोसिस करता है। अगर हम इस बात को करीब से देखें तो हम देख पाएंगे के
- किरदार अपनी दुनिया में हैं और उसको एक लक्ष्य मिलता है
- किरदार उस लक्ष्य को हासिल करने की कोसिस करते हैं लेकिन एक के बाद एक बाधाएं आती हैं। वो एक के बाद एक बाधाओं को पार करते हैं।
- अंतिम में वो अपने लक्ष्य में सफल होते हैं (या फिर विफल होते हैं)
Act One
किरदार अपनी दुनिया में है और फिर उसको कैसे एक लक्ष्य प्राप्त होता है, इसको पहला एक्ट कहते हैं। पहले एक्ट को सेटिंग या फिर सेटअप भी कहते हैं।
Act Two
अब किरदार के सामने एक लक्ष्य है और वो लक्ष्य की और बढ़ता है। तो उसके और उसके लक्ष्य के बीच एक बाधा आता है। उस बाधा को पार करते ही एक और बाधा आता है और फिर उसको पार करते हैं। एक बाधा पिछले बाधा से बड़ा होता है। और फिर एक ऐसा समय आता है के लगता है जैसे किरदार अपना लक्ष्य हासिल कर नहीं पाएंगे। इस पॉइंट पर एक्ट TWO ख़तम होता है।
Act Three
थर्ड एक्ट या फिर आखरी एक्ट में किरदार अपनी कमजोरी और अपनी ताक्कत को समझते हैं। उन्हें दुबारा से एक और समाधान नजर आता है अपनी लक्ष्य को हासिल करने के लिए। और इस बार वो पूरी ताकत के साथ अपनी लक्ष्य की और बढ़ते हैं। और लक्ष्य हासिल करते हैं। (कुछ फिल्मों में आपने जरूर देखा होगा किरदार को उसका लक्ष्य मिलता नहीं हैं। ये सम्पूर्ण रूप से फिल्म स्क्रिप्ट लेखक के ऊपर निर्भर करता है के किरदार को उसका लक्ष्य मिले या ना मिले)
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Outline (Scene Breakdown)
एक बार जब प्लाट तैयार होजाता हैं, उसके बाद प्लाट को सिन में बांटते हैं जिसको सिन ब्रेकडाउन भी कहा जाता है।
यहाँ पर ध्यान दें, कुछ फिल्म स्क्रिप्ट लेखक हर सिन को एक वाक्य में लिखना पसंद करते हैं तो कुछ लेखक हर सिन को विस्तार रूप से पैराग्राफ में लिखना पसंद करते हैं।
एक वाक्य में लिखी गयी सिन ब्रेकडाउन को ONE लाइनर्स (ONE LINERS) कहते हैं।
जब की अगर हर सिन को पैराग्राफ के रूप में विस्तार रूप से लिखा गया हो तो ऐसे डॉक्यूमेंट को स्क्रीनप्ले कहते हैं।
जब की हॉलीवुड में एक वाक्य में लिखी गयी ड्राफ्ट को और पैराग्राफ में लिखी गयी ड्राफ्ट को आउटलाइन ही कहते हैं।
Scene Development
एक बार सिन ब्रेक डाउन हो जाने के बाद अब बारी है हर सिन को विसुअल नैरेटिव फॉर्म में लिखना। इस पॉइंट पर लेखक डायलाग के बारेमे बिलकुल नहीं सोचते हैं। पूरा ध्यान परदे पर क्या दिखाएं उसी और केंड्रीड रहता है।
Dialogue writing
हर सिन की डेवलपमेंट ख़तम हो जाने के बाद किरदार, सिन, प्लाट प्रोग्रेस और प्लाट सिचुएशन को नजर के सामने रख कर डायलाग लिखा जाता है। इंडियन फिल्म इंडस्ट्री एक लौता फिल्म उद्योग है जहाँ डायलाग राइटर अलग से आते हैं और हर सिन के लिए डायलाग लिखते हैं।
Rewriting
फिल्म स्क्रिप्ट लेखक जो नए हैं वो अक्सर अपनी लिखी हुयी पहेली ड्राफ्ट ले कर भागते हैं फिल्म स्टूडियो के पास। पहला लिखा हुआ ड्राफ्ट चाहे कितनी भी अछि लिखी गयी हो हमेसा कच्चे मटकी की तरह होती है। और प्रोफेशनल्स एक पन्ना पढ़ते ही समझ जाते हैं ड्राफ्ट कच्ची है। एक बार सारे सिन के लिए डायलाग लिख लेने के बाद अब बारी हैं उस ड्राफ्ट को पढ़ना और जरुरत के हिसाब से बदलाव लाना।
जैसे आपको ये महसूस होगा के आपकी लिखी हुयी ड्राफ्ट में एक किरदार ज्यादा है आप हटा सकते हैं। आपको लगेगा एक सन बहुत ज्यादा लम्बी है। उसको छोटा कर सकते हैं। जो भी बदलाव आपको महसूस होता है आपके ड्राफ्ट में लाने चाहिए आप वो बदलाव करें।
इसी प्रक्रिया को रीराइटिंग कहते हैं।
Screenplay
स्क्रीनप्ले और स्क्रिप्ट विदेशों में एक ही डॉक्यूमेंट को कहते हैं लेकिन हमारे यहाँ जो डॉक्यूमेंट में डायलाग और कैमरा मूवमेंट की जानकारी लिखा जाये उसको स्क्रिप्ट कहते हैं। (ऊपर ही बताया स्क्रीनप्ले किसे कहते हैं )
Film script format script writing format in Hindi
Film script kaise likhe – फिल्म स्क्रिप्ट का जो एक अभिन्न अंग हैं वो है फॉर्मेट। फिल्म स्क्रिप्ट फॉर्मेट को चलिए समझते हैं।
एक फिल्म, तीन एक्ट को ले कर बनता है, हर एक्ट कई सीक्वेंस को और हर सीक्वेंस कई सारे सिन को लेकर बनता है।
हर सिन के पांच मुख्या अंग होते हैं
- scene heading or slug line
- action
- character cue
- dialogue
- transition
Scene Heading
हर सिन का पहला भाग हैं हैडिंग। जिसे स्लग लाइन भी कहते हैं। ये पढ़ने वाले को सिन की जगह की जानकारी और सिन दिन में घट रहा है या फिर रात को घट रहा है उसकी जानकारी देता है।
INT. HOTEL LOBBY – DAY
ये एक सिन हैडिंग का उदहारण हैं।
ACTION
सिन हैडिंग के बाद एक्शन लिखी जाती हैं। जो भी दरसक परदे पर एक सिन के अंदर देखने वाले हैं उसकी जानकारी लिखी जाती है। एक्शन को हमेसा simple present tense में लिखा जाता है।
Character Cue
Character cue – जो किरदार डायलाग बोलने वाले हों उस किरदार का नाम
Dialogue
किरदार एक सिन के अंदर जो भी बोलते हैं उसको लिखा जाता है।
Transition
एक सिन से दूसरे सिन की और रूख करने की प्रक्रिया है ट्रांजीशन।
cut to
smash cut
cut back to
flash back
flash forward
ये सब ट्रांजीशन कीवर्ड है जो स्क्रिप्ट में इस्तेमाल होते हैं।
तो ये था फिल्म स्क्रिप्ट फॉर्मेट के बारेमे।
स्क्रिप्ट कैसे बेचे How to sell a film script?
हर नया राइटर अपनी लिखी हुयी फिल्म को लेकर प्रोडूसर या फिर फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के चक्कर काटते हैं। कई साल गुजर जाते हैं लेकिन फिर भी मौका नहीं मिलता है। सच कहने जाएँ तो ये तरीका बिलकुल गलत है। पहला कारण अगर प्रोडूसर मिलने के लिए तैयार भी हो जाते हैं तो वो किसी डायरेक्टर से बात करने की सुझाव देते हैं। दूसरा कारण प्रोडूसर फिल्म मेकर नहीं बल्कि इन्वेस्टर होते हैं। वो सिर्फ ऐसे प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करते हैं जो १००% प्रॉफिट देता हो।
अगर फिल्म प्रोडूसर स्क्रिप्ट नहीं खरीदते हैं तो फिल्म स्क्रिप्ट बेचे तो कैसे और किस्से बेचे?
आप सच में अगर गंभीर हैं आपके स्क्रिप्ट जल्द से जल्द बीके तो आपको फिल्म इंडस्ट्री कल्चर को समझना होगा। फिल्म इंडस्ट्री में आज तक स्क्रिप्ट कैसे बिकते आये हैं और आगे भी ऐसे ही बिकेंगे।
कुछ प्रोफेशनल्स तर्क रखेंगे के नहीं नहीं अब तो वेब सीरीज आगये हैं राइटर को प्रोजेक्ट की कमी नहीं रहेगी, ढूंढ़ते ढूंढ़ते घर तक लोग आएंगे। ऐसी सोच गलत हैं। जब प्राइवेट टीवी चैनल बहुत सारे खुल गए तब भी राइटर की मण्डली बहुत खुश होगयी थी और ये समझ बैठी थी के हर राइटर को प्रोजेक्ट मिलेगा। लेकिन हुआ क्या जो राइटर अछि कॉन्टेक्ट्स में थे उन्हें ही मौका मिला।
इसलिए समझदार बनिए और जज्बातों ना बहकर प्रक्टिकली सोचिये। इंडस्ट्री में आज तक जैसे काम होते आया हैं आगे भी वैसा होगा।
अब सवाल इंडस्ट्री में फिल्म स्क्रिप्ट कैसे बिकते आये हैं ?
जो फिल्म डायरेक्टर होते थे वो एक कहानी के ऊपर डॉक्यूमेंट तैयार करते थे जिसको वो स्क्रीनप्ले बोलते थे। ये दर असल one लाइनर्स होते थे हर सिन के। फिल्म डायरेक्टर पहले इंडस्ट्री के टॉप फिल्म एक्टर को सुनते थे। अगर फिल्म एक्टर को पसंद आता था तो प्रोडूसर से मिलते थे और प्रोडूसर फिल्म में पैसा लगते थे। फिल्म प्रोडक्शन सुरु होती थी। जिस दिन सिन होने वाला होता था एक डायलाग राइटर को बुलाया जाता था और दो डायलाग शूट से पहले हर सिन के लिए डायलाग लिखते थे। जो डायलाग लिखा करते थे उनको राइटर कहा जाता था।
ये कल्चर आज भी है। यकीं करने में मुश्किल हैं आज भी डायरेक्टर ही स्क्रीनप्ले लिख कर एक्टर से मिलते हैं।
अब आपके सामने जो बेस्ट समाधान हैं स्क्रिप्ट बेचने के लिए वो है किसी फिल्म डायरेक्टर से मिलना।
नयी फिल्म स्क्रिप्ट की तलाश में अगर कोई एक इंसान लगातार रहते हैं तो वो हैं फिल्म डायरेक्टर। इसका मतलब आपके खरीदार हैं फिल्म डायरेक्टर। कुछ फिल्म डायरेक्टर स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद तुरंत तन्खा या फिर एक अमाउंट इन्सटॉलमेंट पे पर अपने पास रख लेते हैं। तो कुछ डायरेक्टर स्क्रिप्ट बिकने के बाद आपको इंडस्ट्री स्टैण्डर्ड पेमेंट देंगे इस शर्त पर आपकी स्क्रिप्ट स्वीकार करते हैं। किसी भी सूरत पर आपको दुबारा से उनके निर्देशों में काम करना होगा। शुरुआत में कड़वी लगेंगी लेकिन बाद में आप जरूर समझोगे के डायरेक्टर के अधीन स्क्रिप्ट डेवेवलॅपमेंट करने के क्या फल हैं।
अगर आप बिलकुल नए है और आपके खाते में अगर एक भी फील नहीं है तो किसी एक्टर से मिलना या फिर फिल्म प्रोडक्शन हाउसेस से मिलना बेवकूफी है।
भले ही दुनिया कितनी भी बड़ी बड़ी बातें कहें नए प्रतिभाओं को मौका देने की लेकिन मौका मिलता है पिछले काम की वजह से।
इसलिए समझदारी इसी में हैं के किसी फिल्म डायरेक्टर के पास स्क्रिप्ट ले कर जाएँ। वो जानते हैं कौनसी चीज़ बिकेगी और कौनसी चीज़ नहीं बिकेगी।
Avoid Common Mistakes सामान्य गलतियों से बचें
१० में से ८ प्रत्याशी फिल्म स्क्रिप्ट लेखक इंडस्ट्री में निम्नलिखित गलतियां लगातार करते हैं और दस साल पंद्रह साल गुजर जाते हैं फिर भी बिफलताओं की मूल वजह समझ नहीं पाते। आपसे निवेदन है इन गलतियों को मत होने दें।
- I do not need training
- Workshops are useless
- Books are not helpful
- I do not need feedback
- I am in born writer, do not need practice
आप मानो या ना मानों स्क्रीन राइटिंग एक क्राफ्ट है। क्राफ्ट को ट्रेनिंग के जरिये सीखा जाता है। कई स्क्रीनराइटर ये कहते हैं के वो स्कूल के दिनों से कबिता, कहानी लिखते आये हैं, उन्होने कॉलेज के टाइम कई पुरस्कार जीते हैं, और उन्हें स्क्रिप्ट फॉर्मेट की अछि समझ है तो थोड़े ही उनको ट्रेनिंग चाहिए ! ऐसे लोगो को भी ट्रेनिंग चाहिए।
चलिए में आपसे सवाल पूछता हूँ, एक चित्रकार है जो कुछ भी देखे हूबहू चित्रण कर सकता है। तो क्या वो एक बिल्डिंग निर्माण के लिए ब्लू प्रिंट बना सकता है। और जवाब है हाँ। बिलकुल बना सकता है लेकिन वो बिल्डिंग निर्माण के लये उपयुक्त नहीं हैं।
वैसे ही जो राइटर की अछि खाशी कहानी कविता लिखने में अनुभव हो वो स्क्रिप्ट जरूर लिख लेंगे लेकिन उनकी लिखी हुयी स्क्रिप्ट फिल्म मेकिंग के लिए उपयुक्त नहीं होते।
फिल्म इंडस्ट्री के प्रोफेशनल दो पैन पढ़ते ही समझ लेते हैं के राइटर की तयारी कितनी है। राइटर कच्चा है या पक्का है।
कई सेहेरों में वर्कशॉप होते हैं। जसिमे फिल्म स्क्रिप्ट राइटिंग की तालीम दी जाती है। लेकिन प्रत्यासी फिल्म राइटर अटेंड नहीं करते ये कह कर के सिखने को ज्यादा कुछ नहीं है। और यहाँ पर गलती कर बैठते हैं। फिल्म स्क्रिप्ट लेखन में नए नए तकनीक हर साल जुड़ते हैं और इनकी जानकारी आपको सिर्फ एक प्रोफेशनल्स से मिल सकते हैं। इसलिए वर्कशॉप अटेंड करें।
और एक गलती जो करते हैं प्रत्याशी फिल्म राइटर वो हैं, वो फीडबैक नहीं लेते। उनका सोचना ऐसा है के उनकी लिखी हुयी ड्राफ्ट में कोई कमजोरी नहीं है। जब की फील स्क्रिप्ट लेखन की कोसिस एहि होती है के अपनी लिखी हुयी ड्राफ्ट को थर्ड प्रोस्पेक्टिव से देखना। ये तभी संभव होगा जब इसको दूसरे प्रोफेशनल के साथ बांटे।
Resources: Wikipedia/screenwriting
फिल्म स्क्रिप्ट बुक्स
निचे दिए गए किताबें आप क्यों खरीदें और पढ़ें ? कारन फिल्म इंडस्ट्री के अंदर आपके कॉम्पिटिटर एहि किताबें पढ़ कर संघर्ष कर रहे हैं। और कोई भी समझदार ब्यक्ति इस बात को भली भांति मानते हैं के कम्पटीशन में किसी भी कॉम्पिटिटर से जितने के लिए उसकी हर उस प्रतिभा में महारथी हासिल करनी होंगी जिसकी दम पर संघर्ष कर रहे हैं।
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4. Psychology of Screenwriting
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Conclusion
तो उम्मीद हैं आप समझ गए होंगे फिल्म स्क्रिप्ट कैसे लिखे, फिल्म स्क्रिप्ट कैसे बेचे, फिल्म स्क्रिप्ट फॉर्मेट क्या है ?